अगले वर्ष फिर मिलेंगे के उदघोष के साथ विश्वनाथ जगदीशिला डोली यात्रा का समापन

देहरादून। उत्तराखण्ड की बाबा विश्वनाथ माँ जगदीशिला डोली यात्रा माँ गंगा के अवतरण दिवस गंगा दशहरा पर्व की तिथि पर विधिविधान से धार्मिक मंत्रोंच्चारण के साथ अपने पवित्र धाम विशोन पर्वत में अगले वर्ष’ फिर मिलेंगे के संकल्प के साथ सम्पन्न हुई। 26वें साल के 30 दिवसीय आयोजन का इस बार 8 मई को तीर्थ नगरी हरिद्वार में गंगा स्नान के बाद साधू संतों की अगुवाई में पूजा अर्चना के बीच श्री भारत माता मंदिर के महामण्डलेश्वर स्वामी ललितानंद गिरी के सानिध्य में आरम्भ हुई थी। इस देव यात्रा ने वृद्ध बद्री-ध्यान बद्री, महामृत्युंजय महादेव व ज्योतिमठ के नर्सिंग मंदिर के साथ गढ़वाल के अंतिम चोटी में बसे गंगी गांव से होते हुए कुमांऊ के ओम पर्वत आदि कैलाश के पड़ाव हिमालय सिद्धपीठ आश्रम तवाघाट में महामंडलेश्वर स्वामी विरेन्द्रानंद गिरी महाराज की अगुवाई में डोली यात्रा ने श्रद्धालुओं को आर्शीवाद दिया।

आदि गुरू शंकराचार्य का उल्लेख करते हुए स्वामी विरेन्द्रानंद गिरी जी ने कहा कि उत्तर से दक्षिण को जोड़कर उन्होंने सनानत संस्कृति को एक सूत्र में पिरोने का काम किया था उसी तर्क पर विश्वनाथ जगदीशिला डोली यात्रा के माध्यम से मंत्री प्रसाद नैथानी ने यह सूत्रपात किया है कि इसे गढ़वाल-कुमांऊ की साझा संस्कृति से आम जनमानस देव धामों की पूजा पद्धति और सामाजिक सरोकारों से परिचित हो रहे है। इसी तरह अल्मोड़ा के विश्व प्रसिद्ध डोल आश्रम के स्वामी श्री कल्याण दास महाराज ने इस यात्रा को अदभुत बताते हुए कहा कि एक माह की निरन्तरता का यह आयोजन देव संस्कृति का ऐसा अनूठा समागम है जिसमें देव दूत और सनातन संस्कृति का सामांजस्य आध्यात्म की राह दिखाता है ऐसे आयोजनों की निरन्तरता न केवल धार्मिक आस्था के लिए महत्वपूर्ण है अपितु यह सांस्कृति चेतना को भी जीवंत बनाये रखती है। गौरतलब है कि डोल आश्रम में स्वामी जी द्वारा श्रीयंत्र की स्थापना की गई है जिसके लिए देश विदेश के श्रृद्धालुओं का यहाँ दर्शनों के लिए तांता लगा रहता है। विश्वनाथ डोली यात्रा के आगमन पर भक्तों ने भजन कीर्तन के साथ देव डोली के दर्शन किए।

लोहाघाट के मानेश्वर धाम जहाँ की मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पाण्डवों ने इस स्थान पर अपने पूर्वजों का तर्पण किया था और अर्जुन ने कैलाश मानसरोवर के जल की खातिर यहाँ अपने बाण से पानी पहुँचाया था। इस स्थान का विशेष महत्व है और यहाँ आज भी मानसरोवर का जल कुण्ड के रूप में स्थापित है जिसके दर्शन के लिए देश विदेश से श्रद्धालू जुटते है इस धाम के स्वामी जगदीशानंद ने डोली यात्रा के आयोजक श्री नैथानी को साधुवाद का पात्र कहते हुए कहा कि एक साधक के रूप में उनकी यह साधना धार्मिक यात्रा का एक अनुकरणीय उदाहरण है जो कथनी और करनी को मूर्त रूप दे रहा है। यह आज की पीढ़ी के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है।

गंगा दशहरा के पवित्र पर्व पर विशोन पर्वत में ब्रहम मूहुर्त में ब्रहम कुण्ड के सम्मुख स्थापित पौराणिक शिवलिंग का जलाभिषेक कर भक्तों ने पूजा अर्चना की यहाँ महंत स्वामी प्रकाशानन्द के सानिध्य में यज्ञ और हवन का आयोजन किया गया। धार्मिक अनुष्ठान के बाद भोग और प्रसाद का वितरण किया गया। इस अवसर पर ब्राहम्णों द्वारा शिव स्तुति और माँ जगदम्बा के भजनों का पाठ किया गया। देव डोलियां भी यहाँ पहुँची हुई थी जिनका लोगों ने आर्शीवाद के रूप में गुणगान किया।
[07/06, 5:18 pm] 😊: नीला छाड स्थान पर डोली ने समापन समारोह के अवसर पर आयोजित एकत्र श्रृद्धालुओं को आशीष प्रदान किया। देव पशुवा से आर्शीवाद लेने के लिए होड़ लगी रही। इस अवसर पर यात्रा संयोजक मंत्री प्रसाद नैथानी, श्री विश्वनाथ जगदीशिला तीर्थाटन समिति के अध्यक्ष रूप सिंह बजियाला व समारोह के मुख्य अतिथि आंध्र प्रदेश से पहुँचे समाजसेवी बचल सिंह, क्षेत्र पंचायत प्रमुख वसुमति व करण सिंह ने इस आयोजन की महत्ता पर प्रकाश डाला तथा आयोजन से जुडे डोली वाहक, ढोल वादक, रथ वाहक व वेदपाठियों को अंग वस्त्र व स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। इस संकल्प के साथ कि अगले वर्ष फिर मिलेंगे हमें अपना आशीष प्रदान करें के उदघोष के साथ कार्यक्रम की समाप्ति का एलान किया गया। यह देव संयोग ही रहा कि निरंतर बारिश के बावजूद समापन समारोह के ब्रहम मूहुर्त से लेकर समापन अवधि तक इस चोटी और घनघोर जंगल विशोन पर्वत में मौसम बिल्कुल साफ रहा।