* जीने का बेटी को भी अधिकार: डाॅ. सुजाता संजय
देहरादून! सोसाइटी, फार हैल्थ, ऐजूकेशन एंड वूमैन इम्पावरमेन्ट ऐवेरनैस जाखन, देहरादून के द्वारा राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर फेसबुक पर संगोष्ठी का आयोजन संजय ऑर्थोपीडिक, स्पाइन एवं मैटरनिटी सेन्टर द्वारा किया गया।
इस संगोष्ठी के दौरान डाॅ. सुजाता संजय ने बताया कि हमारी सेवा सोसाइटी का उद्देश्य महिलाओं व बच्चियों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना है। इसी उद्देश्य के तहत पिछले आठ साल में कई निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया है। राष्ट्रीय बालिका दिवस पर एक तरफ बेटियों को आगे बढ़ाने की बातें हो रही हैं तो दूसरी तरफ महिलाओं से जुड़े अपराधों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जब बेटियां बचेंगी ही नहीं तो आगे कैसे बढ़ेंगी। लिंगानुपात अभी भी साम्य को तरस रहा है। प्रतिकूल हालात में भी हमारी बालिकाएं हर क्षेत्र में नाम कमाने को आतुर हैं। बालिकाएं हमारे देश के उज्ज्वल भविष्य का प्रतीक है। उन्हें पढ़-लिखकर अपने परिवार का ही नहीं अपितु देश का भी भविष्य संवारना है।
डाॅ. सुजाता संजय ने चिंता जताते हुए कहा कि अगर बेटी पैदा नहीं होगी, तो बहू कहाँ से लाएगें? और इसलिए जो हम चाहते हैं वो समाज भी तो चाहता है। हम यह तो चाहते हैं कि बहू तो हमें पढ़ी-लिखी मिले, लेकिन बेटी को पढ़ाना है तो कई बार सोचने के लिए मजबूर हो जाते है। अगर बहू पढ़ी-लिखी चाहते हैं तो बेटी को भी पढ़ाना यह हमारी जिम्मेदारी बनता है। अगर हम बेटी को नहीं पढ़ायेगें, तो बहू भी पढ़ी-लिखी नहीं मिलेगी। यह अपेक्षा करना अपने साथ बहुत बड़ा अन्याय है। हमें यह सोचना चाहिए कि विकास के पायदानों पर चढ़ने के बावजूद भी आखिर क्यों आज इस देश की बालिका भ्रूण हत्या, बाल विवाह, दहेज, मृत्यु के रूप में समाज में अपने औरत होने का दंश झेल रही है?
डाॅ. सुजाता संजय ने बाताया कि लोगों के सामने तो हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं कि बालिका भी देश का भविष्य है लेकिन जब हम अपने अंदर झांकते हैं तब महसूस होता है कि हम भी कहीं न कहीं प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इसकी हत्या के कहीं न कहीं प्रतिभागी रहे हैं। यही कारण है कि आज देश में घरेलू हिंसा व भ्रूण हत्या संबंधी कानून बनाने की आवश्यकता महसूस हुई।
कार्यक्रम के दौरान डाॅ. सुजाता संजय ने कहा कि आज शिक्षा से लेकर सेना तक हर क्षेत्र में बालिकाएं अपने परिवार देश और समाज का मान बढ़ा रहीं हैं। आज बेटियां हर क्षेत्र में लडकों से कहीं आगे है, आज जरूरत है बेटियों को सम्मान देने की। बेटी ही है जो माता-पिता की प्यारी होती है। एक उम्र के बाद वह पराएं घर चली जाती है। लेकिन बालिकाएं ताउम्र अपने बाबुल के घर की याद संजोए रहती है। आज बच्चियों को सम्मान देने की आवश्यकता है, उन्हें पढ़ाई करवाई जाएं। साथ ही कन्या भ्रूण हत्या जैसे घिनौने अपराध पर लगाम लगनी चाहिए। बेटियां को हर क्षेत्र में आगे बढने से नहीं रोकना चाहिए। इनकी इच्छाओं की कद्र करनी चाहिए।
डाॅ. सुजाता संजय ने बालिकाओं की शिक्षा एवं स्वास्थ्य को महत्व देते हुए बताया कि यह दोनों एक बालिका के मूल अधिकार है। जिसको की माता-पिता एवं सरकार को निभाना चाहिए क्योंकि एक स्वस्थ एवं शिक्षित बालिका ही स्वस्थ परिवार एवं समाज का निर्माण कर सकती है। डाॅ. सुजाता संजय ने सरकार से आग्रह किया कि वह बालिकाओं को निःशुल्क एच.पी.वी. टीकाकरण करवाएं जिससे कि बालिकाएं सरवाइकल कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से बच सकें।
सेवा सोसाइटी के सचिव डाॅ. प्रतीक ने कहा कि महिलाएं खुद को कमजोर न समझें, आज महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में चाहे वह कला हो या विज्ञान या तकनीक, पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, इसलिए उन्हें सम्मान मिल रहा है। उन्होंने कहा कि यदि महिलाएं चाहें तो भ्रूण हत्या को रोक सकती है। भारत में आज से नहीं, लगभग दो दशकों पहले ही भ्रूण हत्या की शुरूआत हो गई है।