चाय बागान की जमीन उत्तराखंड सरकार की

देहरादून। देहरादून में चाय बागान की सीलिंग की बेशकीमती जमीन को कब्जाने के मामले में अपर जिला कलक्टर अदालत ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। इसके तहत चकरायपुर, रायपुर, लाड़पुर, परवादून में चाय बागान की जमीन की खरीद-फरोख्त को गैरकानूनी करार दिया है। अदालत ने लाडपुर स्थित जमीन पर अपना अधिकार बताने वाले वादी संतोष अग्रवाल की याचिका को खारिज कर दिया गया है। अदालत ने कहा है कि इस जमीन का मालिकाना हक राज्य सरकार का होगा।

देहरादून के जिला अपर कलक्टर डा. शिव कुमार बरनवाल ने याचिकाकर्ता संतोष अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई की। याचिका में संतोष कुमार ने अपील की थी कि चकरायपुर, लाडपुर, रायपुर स्थित चाय बागान की जमीन पर उनका मालिकाना हक है। इस जमीन की खरीद-फरोख्त कानूनी तरीक से की गयी है। अदालत ने याचिकाकर्ता के इस दावे को निरस्त कर दिया। अदालत ने कहा कि चाय बागान की जमीन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 10 अक्टूबर 1975 के बाद सीलिंग की जमीन को लेकर स्पष्ट आदेश दिये थे कि यदि कोई भूमि मालिक सीलिंग की जमीन की खरीद-फरोख्त करेगा तो उसका जमीन पर मालिकाना हक स्वतः ही समाप्त हो जाएगा और यह जमीन सरकार को हस्तांतरित हो जाएगी।

गौरतलब है कि यह मामला आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी ने उठाया था और इस मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। इस मामले में हाईकोर्ट ने आदेश दिये थे कि मामले की सुनवाई नियत प्राधिकारी ग्रामीण सीलिंग करें। यह आदेश मौजा रायपुर, चकरायपुर, लाड़पुर, नत्थनपुर और परवादून की चाय बागान को लेकर दिये गये। सीलिंग भूमि में वादी पक्ष कुमुद वैद्य आदि वारिस बनाए गये हैं। वादी संतोष अग्रवाल ने याचिका दायर की थी कि यह उनकी पुश्तैनी भूमि है और उसे बेच सकते हैं। लेकिन अदालत ने उनकी इस दलील को नहीं माना। इसके बाद चकरायपुर की भूमि खसरा नंबर 203 की 4.40 एकड़, खसरा नंबर 204 की 0.18 एकड़ और खसरा नंबर 205 की कुल 2.12 एकड़ यानी कुल 6.70 हेक्टेयर भूमि को राज्य सरकार की भूमि बताया है। इसके तहत भूमि को हस्तांतरित करना या बेचना पूरी तरह से गैरकानूनी है।

क्या कहता है उप-जिलाअधिकारी डा. शिव कुमार बरनवाल का आदेश
संतोष अग्रवाल पुत्र पन्नालाल अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र पर सुनवाई की गयी। पत्रावली में उपलब्ध समस्त तथ्यों एवं विपक्षी के विद्वान अधिवक्ताओं एवं सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता राजस्व देहरादून की बहस से स्पष्ट है कि ग्राम चकरायपुर की भूमि खसरा नम्बर/क्षेत्रफल 203/4.40 एकड़, 204/0.18 एकड, 205/2.12 एकड़ कुल 6. 70 एकड़ भूमि विक्रेता कुंवर चन्द्र बहादुर द्वारा उ०प्र०अधि०जो०सी०आ०अधि0 1960 के तहत सीलिंग से छूट प्राप्त चायबाग भूमि घोषित करवाई थी। जिसे न्यायालय अपर कलक्टर /नियत प्राधिकारी ग्रामीण सीलिंग द्वारा दिनांक 31.07.1996 के फैसले में स्पष्ट उल्लेख भी किया गया है। विक्रेता द्वारा स्वयं धारा ठ (1) (घ) के तहत चाय बाग घोषित करायी भूमि को बिना राज्य सरकार की पूर्व अनुज्ञा के अधिनियम 1960 की धारा 6 ( 2 ) का उल्लंघन करते हुये, 1987 में श्री संतोष अग्रवाल की माता इन्द्रावती पत्नी पन्नालाल को विक्रय किया गया। जोकि अधिनियम 1960 के प्राविधान धारा 6 ( 2 ) के तहत यह अन्तरण ( विक्रय विलेख) स्वतः शून्य हो चुका है तथा साथ ही धारा 6 (3) के अनुसार यह भूमि अतिरिक्त भूमि समझी जायेगी और दिनांक 10.10.1975 के बाद वर्ष 1987 में हुआ यह बैनामा स्वतः शून्य होते हुये ग्राम चकरायपुर की खसरा 203 / 4.40 एकड़ 204 / 0.18 एकड़, 205 / 2.12 एकड़ कुल 6.70 एकड़ भूमि अन्तरण के दिनांक 12.05.1987 से ही समस्त भारों से मुक्त होकर राज्य सरकार को अन्तरित और उसमें निहित हो चुकी है तथा इस भूमि में समस्त व्यक्तियों के समस्त अधिकार, आगम तथा स्वत्व समाप्त हो चुके हैं। वर्तमान में यह भूमि राज्य सरकार की सम्पत्ति है। जिस पर नगर निगम अधिनियम 1959 के प्राविधान उपरोक्त तथ्यों के दृष्टिगत लागू नहीं होते हैं। अतः संतोष अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र दिनांक 22.09.2022 का उपरोक्तानुसार निस्तारण करते हुए प्रार्थना पत्र निरस्त किया जाता है।

जानिए क्या था पूरा मामला
कुवंर चन्द्र बहादुर द्वारा उत्तर प्रदेश अधिकतम जोत सीमारोपण अधिनियम 1960 के प्रावधानों 6(1)घ, 6(2) एवं अधिकतम जोत सीमारोपण नियमावली 1961 की धारा 4क के प्राविधानों का उल्लंघन किया गया है। अतः उक्त अधिनियम की धारा 6 (3) के तहत नियमानुसार कार्यवाही की जाये, के क्रम में समस्त जाँच प्राप्त कर एवं सुनवाई करते हुये उपरोक्त रिट याचिका के क्रम में वाद में दिनांक 16.08.2022 को निर्णय/आदेश पारित किया गया था। तत्पश्चात् उक्त वाद में संतोष अग्रवाल द्वारा अधिवक्ता दिनांक 26.08.2022 को न्यायालय में उपस्थित होकर एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया जिसमें उनके द्वारा अवगत कराया गया कि प्रार्थी के द्वारा रिट याचिका संख्या एम०एस० 1933 / 2022 संतोष अग्रवाल बनाम उत्तराखण्ड राज्य, मा० उच्च न्यायालय, नैनीताल के समक्ष योजित की थी, जिसमें मा0 उच्च न्यायालय नैनीताल के द्वारा दिनांक 18.08.2022 को आदेश पारित किया है, जिसमें प्रार्थी द्वारा मा० उच्च न्यायालय के समक्ष निवेदन किया है कि वह भूमि का खरीददार है तथा नोटिस भूतपूर्व मालिकों को जारी किया गया है एवं मा0 उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि वाद की मेरिट पर कोई विचार व्यक्त नहीं किया जा रहा है तथा आदेश है कि दिनांक 26. 08.2022 को इस न्यायालय में प्रस्तुत प्रार्थना पत्र में अवगत कराया है कि प्रार्थी भूमि खसरा नम्बर 203, 205 मौजा चक रायपुर का स्वामी है। न्यायहित में उक्त प्रकरण में प्रार्थी को नोटिस जारी कर सुनवाई का अवसर प्रदान करने और आपत्ति दाखिल करने का अवसर प्रदान करने हेतु अनुरोध किया गया। मा० उच्च न्यायालय में योजित रिट याचिका संख्या एम०एस० 1933/2022 संतोष अग्रवाल बनाम उत्तराखण्ड राज्य में पारित आदेश दिनांक 18.08.2022 व श्री संतोष अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र दिनांक 28.08.2022 के परिप्रेक्ष्य में इस न्यायालय द्वारा संतोष अग्रवाल पुत्र पन्ना लाल अग्रवाल को दिनांक 06.09.2022 को वाद में पैरवी करने हेतु नोटिस जारी किया गया।
नियत तिथि दिनांक 22.09.2022 को संतोष अग्रवाल द्वारा अधिवक्ता न्यायालय में उपस्थित आये व उनके द्वारा बाद में आपत्ति पत्र प्रस्तुत किया गया जिसमें उल्लेख किया गया है कि जहां तक उ०प्र० अधिकतम जोत सीमा रोपण अधिनियम 1960 का प्रश्न है, यह अधिनियम प्रश्नगत सम्पत्ति पर लागू नहीं होता है, क्योंकि प्रश्नगत सम्पत्ति नगर निगम क्षेत्र के अन्तर्गत आती है व नगर निगम क्षेत्र में आने वाली भूमि पर उ०प्र० अधिनियम जोत सीमा रोपण अधिनियम 1960 लागू नहीं होता है। यह उ०प्र० अधिकतम जोत सीमा रोपण अधिनियम 1960 की धारा 2 परिशीलन योग्य है, जिसके अनुसार राज्य सरकार इस अधिनियम के उपबन्धों को सरकारी गजट में विज्ञप्ति द्वारा नगर निगम क्षेत्रो में प्रवृत्त कर सकती है। ष् यहां यह तथ्य उल्लेखनीय है कि सरकार ने सरकारी गजट में विज्ञप्ति द्वारा नगर निगम क्षेत्र में उ०प्र० अधिकतम जोत सीमा रोपण अधिनियम 1960 को लागू नहीं किया है, ऐसी दशा में वादग्रस्त भूमि को नगर निगम क्षेत्र में आने के कारण प्रेषित नोटिस अपास्त किये जाने योग्य है। ज्ीम न्तइंद स्ंदक ब्मससपदह ंदक तमहनसंजपवद ।बज वर्तमान मे आस्तित्व में नहीं है और रद्द हो चुका हैं। ऐसी स्थिति मे धारा 6 (2) सीलिंग एक्ट के अन्तर्गत नोटिस दिया गया पूर्णतः विधि विरूद्ध है और खारिज किये जाने योग्य है। रद्द होने के बाद की गयी कोई भी कार्यवाही अवैध है। नोटिस भी अवैध है उसके आधार पर की गयी कार्यवाही भी अवैध है।

सन्तोष अग्रवाल आज भी मौके पर काबिज व अध्यासी है। अपर तहसीलदार देहरादून द्वारा वाद सं0 75/87 मौजा चकरायपुर अन्तर्गत धारा 34 एल0आर0 एक्ट इन्द्रावती बनाम कुंवर चन्द बहादुर में पारित आदेश दिनांक 17.08.1988 के द्वारा खाता सं0 पुराना 43 व नई सं0 57 के खसरा नं0 203 रकबा 4. 40 एकड, खसरा नं0 204 रकबा 0.18 एकड, खसरा नं० 205 रकबा 2.12 एकड़ कुल रकबा 6.70 एकड़ की बाबत श्री कुंवर चन्द बहादुर का नाम खारिज कर सन्तोष अग्रवाल की माता इन्द्रावती का नाम दर्ज करने का आदेश पारित किया गया था और उनकी मृत्यु के उपरान्त उक्त भूमि बतौर वारिस सन्तोष अग्रवाल में न्यायागमित हो गयी। सरकार के द्वारा आज तक उक्त भूमि का कब्जा कभी भी प्राप्त नहीं किया गया है।

1-आपत्तिकर्ता का कथन है कि दिनांक 12.05.1987 को सी0बी0 बहादुर ने श्रीमती इन्द्रावती के हक में विकय पत्र सम्पादित किया तथा दिनांक 06.08.1988 को दाखिल खारिज की कार्यवाही में तत्कालीन हल्का लेखपाल द्वारा अपनी आख्या प्रस्तुत की गयी, इस कार्यवाही में हल्का लेखपाल द्वारा सीलिंग से सम्बन्धित आख्या नहीं दी गयी है। इन्द्रवती द्वारा कय की गयी भूमि पर चाय बगान संबंधी कोई आख्या नहीं दी गयी। यदि राजस्व अभिलेखों में सम्बन्धित भूमि चाय बगान होने का आदेश होता तो उस दशा में अवश्य की सक्षम प्राधिकारी के समक्ष अनुमति हेतु प्रार्थना पत्र दाखिल किया जाता । कय की गयी भूमि खसरा नम्बर 203 204,205 की बाबत तहसीलदार ने वाद संख्या 75/1988 की बाबत राजस्व अभिलेखों में दुरूस्ती के आदेश पारित किये।
2-उत्तर प्रदेश अधिरोपण सीलिंग एवं लैंड होल्डिंग एक्ट, 1980 की धारा 6 (2) के तहत कार्यवाही शुरू करने में राज्य की कार्यवाई अब तक, वर्ष 2022 में अत्यधिक विलंबित है और सीमा के सभी स्वीकृत सिद्धांतों (उचित सीमा) का भी उल्लंघन करती है। यदि कोई कानून सीमा के लिए प्रदान नहीं करता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि कथित उल्लंघनकर्ता के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के लिए कोई सीमा मौजूद नहीं है। सीमा अधिनियम की धारा 29 (2) के अनुसार, यह निर्धारित किया गया है कि सीमा अधिनियम के आवेदन से बचने के लिए कानून को विशेष रूप से सीमा अधिनियम के आवेदन को बाहर करना चाहिए। इस तरह के निष्कासन की अनुपस्थिति में, यह माना जाएगा कि सीमा अधिनियम लागू होता है।

3- किसी भी मामले में, यह मानते हुए कि 1987 का बिक्री विलेख शून्य है, अधिनियम की धारा 6 (2) का उल्लंघन होने के कारण, आपत्तिकर्ताओं ने लंबे समय तक प्रतिकूल कब्जे में रहने के कारण स्वामित्व को सिद्ध किया है। 30 से अधिक वर्षों से विचाराधीन भूमि में तथ्य यह है कि संबंधित भूमि के संबंध में दाखिल खारिज आदेश पारित किए गए थे, यह इंगित करने के लिए पर्याप्त है कि सरकार दा०खा० आदेश के पारित होने की तिथि के साथ-साथ बिक्री विलेख के पंजीकरण की तिथि, जो भी पहले हो, आपत्तिकर्ताओं (या पूर्ववर्तियों) के कब्जे का सक्रिय ज्ञान था। इस प्रकार 30 वर्षों से अधिक समय तक उक्त भूमि पर आपत्तिकर्ताओं और उसके पूर्ववर्तियों का कब्जा राज्य को उक्त भूमि पर किसी भी स्वामित्व के दावे से वंचित करेगा।

4- जब बिक्री विलेख दिनांक 12.05.1987 को सी०बी० द्वारा निष्पादित किया गया था। इंद्रावती के पक्ष में दाखिल खारिज की कार्यवाही की गई और कार्यवाही के दौरान संबंधित पटवारी ने उक्त खसरा संख्या से संबंधित को प्रतिवेदन दिया कि उक्त खसरा संख्या अधिकतम सीमा के भीतर नहीं है और अधिकतम सीमा से मुक्त है, इसके अलावा कब्जा था। पटवारी द्वारा 06.6.1988 को पूछताछ के बाद दी गई उक्त रिपोर्ट के आधार पर श्रीमती इंद्रावती के नाम पर राजस्व रिकॉर्ड में नामांतरण किया गया था । अतः यह सिद्ध हुआ कि क्रय की तिथि पर श्रीमती इन्द्रावती द्वारा खरीदी गई सम्पत्ति सीलिंग सीमा में नहीं है तथा सीलिंग से मुक्त है तथा उक्त सम्पत्ति के सम्बन्ध में किसी भी चाय बगान का उल्लेख नहीं था यदि उस समय पटवारी ने अपनी रिपोर्ट दी होती चाय बगान होने की संपत्ति की स्थिति के संबंध में तो याचिकाकर्ता माननीय सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार राज्य सरकार के समक्ष मंजूरी के लिए आवेदन करेगा लेकिन इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी जैसा कि रिकॉर्ड में कहा गया है कि भूमि सीलिंग सीमा में नहीं थी और भूमि की स्थिति चाय बागान नहीं थी। याचिकाकर्ता को यह उल्लेख करना है कि उक्त संपत्ति के संबंध में धारा 34 यूपी भू-राजस्व अधिनियम 1901 के तहत कार्यवाही अपर तहसीलदार के न्यायालय के समक्ष की गई थी। पंजीकृत बिक्री विलेख के आधार पर राजस्व रिकॉर्ड में परिवर्तन करने का निर्देश दिया था।

5- भू-राजस्व अधिनियम की धारा 34 एवं पैरा ए-124 में निहित भूमि अभिलेख नियमावली के अध्याय ए-8 के अंतर्गत के तहत की आती है। भूमि अभिलेख नियमावली का पैरा ए-124 याचिकाकर्ता की जोतों की व्यवस्था और राजस्व प्रविष्टि को वर्गीकृत करता है, जैसा कि खतौनी में दर्ज किया गया है, जिसका संदर्भ याचिकाकर्ता द्वारा उन राजस्व प्रविष्टियों से संबंधित है जो 1399 से 1404 फसली में की गई थीं। भूमि के संबंध में जिसे कॉलम 4 में श्रेणी 1-क भूमि के रूप में दर्ज दिखाया गया है श्रेणी 1 क भूमि हस्तांतरणीय अधिकारों के लिए एक भूमिधर की भूमि होगी जिसे अधिनियम की धारा 130 के तहत निहित प्रावधानों के अनुरूप पढ़ा जाना है, जो भूमिधारी भूमि पर हस्तांतरणीय अधिकारों के साथ परिशोधित करती है। भूमि राजस्व अधिनियम 1901 की धारा 34 के तहत तहसीलदार द्वारा पारित आदेश के आधार पर उपरोक्त खसरा के संबंध में यह तर्क दिया जाता है कि श्रीमती इंद्रावती के नामांतरण आवेदन की अनुमति देने के परिणामस्वरूप संपत्ति याचिकाकर्ता की मां श्रीमती इंद्रावती के नाम दर्ज है।

6- याचिकाकर्ता की मां का 22.08.1988 को निर्वसीयत निधन हो गया, इसलिए, याचिकाकर्ता ने खुद को जीवित उत्तराधिकारियों और उत्तराधिकारी में से एक होने का दावा किया, 22.08.1988 को मां के दुखद निधन के बाद, चूंकि उनकी संपत्ति पहले से ही एक महिला के पास थी, उत्तराधिकार का अधिकार यूपी एल.आर. अधिनियम की धारा 172 के प्रावधानों के तहत मृत्यु होने पर 17.01.2020 को उक्त आशय का एक आवेदन दाखिल करके राजस्व रिकॉर्ड में उसका नाम नामांतरण के लिए आवेदन किया ताकि खाता संख्या 57 के खिलाफ उसका नाम दर्ज किया जा सके। जिसमें ग्राम चकरायपुर जिला देहरादून का खसरा क्रमांक 203, 204 एवं 205 शामिल है।

7- इस प्रकार याचिकाकर्ता द्वारा दिनांक 17.01.2020 को स्वयं को दर्ज करने के लिए प्रस्तुत आवेदन पर अपर तहसीलदार की अदालत द्वारा विचार किया गया और याचिकाकर्ता को राजस्व अभिलेखों में 19.03.2020 और 21.3.2020 के आदेश के आधार पर म्यूटेशन करने का निर्देश दिया गया।

8- भू-राजस्व अधिनियम 1901 के अन्तर्गत भू-राजस्व अधिनियम की धारा 34 के अन्तर्गत उत्तराधिकार के रूप में राजस्व अभिलेखों में किसी व्यक्ति का नाम दर्ज होने पर उक्त आदेश से व्यथित किसी भी व्यक्ति को अपील का अधिकार प्राप्त है जो धारा 210 के तहत आरक्षित किया गया है, साथ ही भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 219 के तहत संशोधन भी प्रदान किया गया है इस शर्त के अधीन कि निगरानी का अधिकार सीधे तभी उपलब्ध है, जब पुनरीक्षणकर्ता ने भू राजस्व अधिनियम, 1901 की धारा 210 के तहत उपलब्ध अपीलीय मंच को पहले ही समाप्त नहीं कर दिया हो।

9. इस मामले में प्रतिवादियों द्वारा आयुक्त के समक्ष पुनरीक्षण प्रस्तुत किया गया। वर्ष 2021-2022 के पुनरीक्षण संख्या 09 उमेश कुमार बनाम संतोष कुमार एवं अन्य में आयुक्त गढ़वाल के न्यायालय द्वारा दिनांक 31.3.2022 के पारित आदेश द्वारा दाखिल खारिज के आदेश के विरुद्ध अनुमति दी गयी थी पुनरीक्षण न्यायालय के आदेश (रिट याचिका के अनुलग्नक 9) में दर्ज किए जाने वाले दावे पर विचार करते हुए, 1996-1997 के वाद संख्या 13 के माध्यम से सीलिंग कार्यवाही में सक्षम सीलिंग प्राधिकारी द्वारा पारित आदेशों पर भी विचार किया गया था और 1960 के उत्तराखंड सीलिंग एवं लैंड होल्डिंग्स एक्ट की धारा 71 के तहत निहित प्रावधानों के आलोक में उत्तर प्रदेश सीलिंग एवं लैंड होल्डिंग्स एक्ट के प्रावधानों के प्रभाव के परिणामस्वरूप, विद्वान पुनरीक्षण न्यायालय ने 31.03. 2022 के अपने फैसले के तहत रिट याचिका में भू-राजस्व अधिनियम, धारा 34 के तहत कार्यवाही में पारित आदेश को रद्द कर दिया है।

10. आयुक्त के दिनांक 31.03.2022 के पुनरीक्षण न्यायालय के आदेश के विरुद्ध याचिकाकर्ता द्वारा राजस्व बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत किए गए पुनरीक्षण को सदस्य, राजस्व बोर्ड द्वारा 05.04.2022 को विवादित आदेश द्वारा तय किया गया है, जिसमें कहा गया है कि इस न्यायालय द्वारा 2020 की रिट याचिका संख्या 2412 में दिए गए निर्णय के आलोक में, जैसा कि 06.12.2020 को तय किया गया था, यह देखा गया था कि जब भूमि किसी क्षेत्र के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में आती है, जिसके पास नगर निगम के साथ अधिसूचित किया गया है, उत्तराखंड नगर निगम अधिनियम 1959 के तहत निहित प्रावधानों के अनुसार नामांतरण की कार्यवाही की जानी है।

11. ऐसी स्थिति में, यह देखा गया है कि एक बार जब भूमि नगर निगम के प्रादेशिक क्षेत्र और नगर निगम अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत आती है, तो यह अपने आप में एक स्व-निहित प्रावधान है, जिसमें नामान्तरण का प्रावधान भी शामिल है, उस स्थिति में, भूमि जब या जैसे ही यह एक अर्धशहरीकृत या शहरीकृत क्षेत्र में आता है, इसे यू.पी. एल०आर० एक्ट की धारा 3 की उप धारा (14) के तहत भूमि की परिभाषा के दायरे से बाहर कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति में जब भूमि को राजस्व क्षेत्राधिकार के दायरे से बाहर कर दिया जाता है, जिस पर अधिनियम या भूमि राजस्व अधिनियम के प्रावधान स्पष्ट रूप से भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 34 को लागू किया जा सकता था, नहीं उपलब्ध होगा।

12. आयुक्त के दिनांक 31.03.2022 के पुनरीक्षण न्यायालय के आदेश के विरुद्ध याचिकाकर्ता द्वारा राजस्व बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत किए गए पुनरीक्षण को सदस्य, राजस्व बोर्ड द्वारा 05.04.2022 को विवादित आदेश द्वारा तय किया गया है, जिसमें कहा गया है कि 06.12.2020 को 2020 की याचिका (एमव / एस०) संख्या 2412 में इस न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले के आलोक में यह देखा गया था कि जब भूमि नगर निगम के साथ अधिसूचित क्षेत्र के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में आती है 1959 के उत्तराखंड नगर निगम अधिनियम के तहत निहित प्रावधानों के अनुसार नामांतरण की कार्यवाही की जानी है।

13- उपरोक्त सभी कार्यवाही को श्री संतोष अग्रवाल द्वारा माननीय उच्च न्यायालय की रिट याचिका संख्या 709 / 2022 संतोष अग्रवाल बनाम आयुक्त गढ़वाल मंडल पौड़ी एवं अन्य के समक्ष राजस्व मंडल के आदेश दिनांक 05.04.2019 को चुनौती दी गई।

14- दिनांक 19.08.1952 विधिवत दर्ज व पंजीकृत है। दिनांक 03.10.2022 को आपत्तियां आमंत्रित करने हेतु व सम्बन्धितों को प्रतियां देने हेतु पेशकार को निर्देश दिये गये। जिस पर मौखिक रूप से संतोष अग्रवाल के अधिवक्ता द्वारा बैनामें के फर्जी होने एवं इसी मामले में सहारनपुर में मुकदमा दिनांक 18.09.2021 को दर्ज होने की बात कही गयी एवं इसका उल्लेख मा० आयुक्त महोदय द्वारा वाद की सुनवाई के दौरान भी उल्लेख किया जाना बताया गया है। इसके पश्चात् उमेश कुमार द्वारा अधिवक्ता कभी मामले में पैरवी नहीं की गयी है। अतः उपरोक्तानुसार कठित कूटरचित बैनामे पर मा० आयुक्त महोदय गढवाल द्वारा इस प्रकरण की सुनवाई के दौरान आये तथ्यों के दृष्टिगत श्री उमेश कुमार का प्रार्थना पत्र दिनांक 22.09.2022 बलहीन होने के कारण स्वीकार नहीं किया गया है।