देहरादून। आंकड़ों के अनुसार, देशभर में विटामिन डी की कमी से ग्रस्त लोगों की संख्या लगभग 75 प्रतिशत है। यह डाटा टाटा उह1 लैब्स द्वारा भारत के 27 शहरों में 22 लाख लोगों पर किये गये परीक्षण के बाद सामने आया है। उल्लेखनीय विटामिन डी की कमरता से जूझ रहे पुरुषों की संख्या 79 प्रतिशत है तो वहीं 75 प्रतिशत महिलाओं में विटामिन डी की कमी पाई गई। वडोदरा (89 प्रतिशत) और सूरत (88 प्रतिशत) जैसे शहरों में ऐसे लोगों की संख्या सबसे अधिक पाई गई, तो वहीं देशभर के सभी शहरों में की गई जांच से हासिल डाटा के मुताबिक, तमाम शहरों के मुकाबले दिल्ली-एनसीआर (72 प्रतिशत) में विटामिन डी की कमरता के सबसे कम मामले देखने को मिले।
विश्लेषणात्मक डाटा में पाया गया है कि राष्ट्रीय औसत के मुकाबले अधिकतर युवाओं में विटामिन डी की कमतरता पाई गई। विटामिन डी की कमी से ग्रस्त होनेवालों में 25 साल से कम आयुवर्ग वाले लोगों की संख्या 84 प्रतिशत जबकि 25-50 आयुवर्ग के लोगों की संख्या 81 प्रतिशत है।
उल्लेखनीय है कि विटामिन डी को श्सनशाइनश् विटामिन के नाम से भी जाना जाता है जो व्यक्ति के समग्र विकास, मेटाबॉलिज्म, रोग प्रतिरोधक शक्ति और लोगों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद आवश्यक होता है. शरीर में विटामिन डी की कमी से लोगों के प्रोस्टेट कैंसर, डिप्रेशन, डायबिटीज, रियूमेटॉयड आर्थराइटिस और रिकेट्स जैसी बिमारियों के शिकार होने का खतरा रहता है। टाटा 1 एमजी लैब्स के वीपी डॉ. राजीव शर्मा कहते हैं, ष्खान-पान को लेकर लोगों की बदलती आदतों, घरों में रहने संबंधित जीवनशैली में बदलाव और सूरज की किरणों से कम होते एक्पोजर के चलते विटामिन डी की कमतरता के मामलों में तेजी से वृद्धि देखने को मिल रही है।
किशोर युवक-युवतियों में विटामिन डी की कमरता की मुख्य वजहों में विटामिन डी से लैस खाने का कम सेवन प्रमुख है. इनमें फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों और तैलीय मछलियों का सेवन ना करना अथवा कम मात्रा में सेवन करना शामिल है. ठंड के मौसम में सूरज की किरणों से बचने अथवा धूप में ना निकलने की आदत को भी विटामिन डी की कमी का एक प्रमुख कारण माना जा सकता है. महिलाओं में अनियोजित प्रेग्नेंसी और दो प्रेग्नेंसी में उचित अंतराल ना रखना और खान-पान का अनियमित होना भी महिला और बच्चे दोनों के लिए विटामिन डी की कमी का बड़ा कारण साबित होता है, जिसे बचने की सख्त जरूरत है। मानव त्वचा विटामिन डी के लिए कोलेस्ट्रॉल के एक प्रकार के अग्रगामी के रूप में कार्य करती है। यह जब सूरज से निकलने वाली यूवी व बी रेडिएशन से एक्सपोज होती है तो विटामिन डी में तब्दील हो जाती है। सूरज की किरणों से संतुलित एक्सपोजर और अंडे की जर्दी, तैलीय मछलियों, रेड मीट, फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थ आदि के सेवन से विटामिन डी में आने वाली कमी को कारगर तरीके से रोका जा सकता है।